सीने में उछल रही है हसरत मेरी
आँखों में तड़प रही है हैरत मेरी
सुनता हूँ हर एक शय में पिन्हाँ है तू
इस पर भी न तू मिले तो क़िस्मत मेरी
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न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
ये हवाएँ तो मुआफ़िक़ थीं बहुत
इक फ़क़त याद है जाना उन का
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है
वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो
जो सफ़र भी था ज़िंदगानी का
रस्म-ए-मेहर-ओ-वफ़ा की बात करें
मैं आ रहा हूँ