या क़ल्ब को दर्द में डुबोना सीखो
या ज़ब्त से हम-कनार होना सीखो
उस हुस्न को देखते रहोगे कब तक
जल्वों को निगाह में समोना सीखो
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जब अश्क तिरी याद में आँखों से ढले हैं
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
तस्कीन-ए-विसाल ओ रंज-ए-फ़ुर्क़त क्या है
आज 'तबस्सुम' सब के लब पर
उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
दास्तान-ए-ग़म हम ने कह भी दी तो क्या होगा
कौन किस का ग़म खाए कौन किस को बहलाए
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?
औरों की मोहब्बत के दोहराए हैं अफ़्साने
हर ज़हर को तिरयाक़ समझ कर पी लो
हुस्न का दामन फिर भी ख़ाली