ये फूल चमन को क्या सँवारें साक़ी
काँटों में उलझ गईं बहारें साक़ी
अफ़्सुर्दा फ़ज़ा में घुट रही हैं साँसें
अब क़हक़हे बाक़ी न पुकारें साक़ी
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यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
जो सफ़र भी था ज़िंदगानी का
आज 'तबस्सुम' सब के लब पर
न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
इश्क़ की इब्तिदा है सोज़-ए-दरूँ
सीने में उछल रही है हसरत मेरी
है फ़ितरत-ए-ज़न रमीदा आहू की तरह
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
सायों से लिपट रहे थे साए
जब अश्क तिरी याद में आँखों से ढले हैं