ये साज़-ए-तरब ये शादमानी कब तक
ये कैफ़-ए-शराब-ए-उर्ग़ुवानी कब तक
आ होश में आँख खोल फ़र्दा को न भूल
माना कि जवाँ है तो जवानी कब तक
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तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा
तिरे फ़िराक़ में ज़हराब-ए-ग़म पिए जाऊँ
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?
मैं आ रहा हूँ
यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब
मिलते गए हैं मोड़ नए हर मक़ाम पर
देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के