ये शौक़-ए-शराब-ओ-जाम-ओ-मीना कैसा
साक़ी नहीं तू अगर तो पीना कैसा
आँखों से निहाँ है तू तो हस्ती क्या है
आग़ोश में तू नहीं तो जीना कैसा
Mohsin Naqvi
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Parveen Shakir
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Mir Taqi Mir
Gulzar
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उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
शादाँ हूँ कि ग़मनाक पिए जाता हूँ
तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी
दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए
ये मरहला-हा-ए-शौक़ तौबा तौबा
जान दे कर वफ़ा में नाम किया
देखो शब-ए-हिज्र की दराज़ी देखो
अफ़्साना-ए-ग़म है शादमानी मेरी
हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है
कौन किस का ग़म खाए कौन किस को बहलाए
ये आज आए हैं किस अजनबी से देस में हम
जो सफ़र भी था ज़िंदगानी का