ये शौक़-ए-शराब-ओ-जाम-ओ-मीना कैसा
साक़ी नहीं तू अगर तो पीना कैसा
आँखों से निहाँ है तू तो हस्ती क्या है
आग़ोश में तू नहीं तो जीना कैसा
Anwar Masood
Allama Iqbal
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Habib Jalib
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Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
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हुस्न का दामन फिर भी ख़ाली
आँखों में ख़ुमार-ए-शौक़-अफ़ज़ा ले कर
रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
मेरा ख़ुदा
निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं
लहू फ़क़ीरों का सोज़-ए-यक़ीं से था जब गर्म
सीने में उछल रही है हसरत मेरी
वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
या क़ल्ब को दर्द में डुबोना सीखो
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
ये साज़-ए-तरब ये शादमानी कब तक
है फ़ितरत-ए-ज़न रमीदा आहू की तरह