ज़िंदगी जिस ने तल्ख़ की मेरी
वो मुझे ज़िंदगी से प्यारा है
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कि ख़ुद-नुमाई न तश्हीर चाहते हैं हम
सिर्फ़ थोड़ी सी है अना मुझ में
ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ
इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल
पहाड़ जैसे दिनों को तो काट लूँ लेकिन
जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला
ज़रूरी कब है कि हर काम इख़्तियारी करें
दस्त-बरदार हुआ मैं भी तलबगारी से
हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं
इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरा
ये राज़ उस ने छुपाया है ख़ुश-बयानी से