हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो

हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो

ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ शब-ए-ग़म का एहतिमाम करो

अगर ज़रा भी रिवायत की पासदारी है

ख़िरद के दौर में रस्म-ए-जुनूँ को आम करो

ख़ुदा गवाह फ़क़ीरों का तजरबा ये है

जहाँ हो सुब्ह तुम्हारी वहाँ न शाम करो

न रिंद ओ शैख़ न मुल्ला न मोहतसिब न फ़क़ीह

ये मय-कदा है यहाँ सब को शाद-काम करो

वही है तेशा बयाबाँ वही है दार वही

जो हो सके तो ज़माने में तुम भी नाम करो

ख़िराम-ए-यार की आहट सी दिल से आती है

सरिश्क-ए-ख़ूँ से चराग़ाँ का एहतिमाम करो

असीर-ए-ज़ुल्फ़ हमीं इक नहीं हैं 'मीर' भी थे

मगर अब उठ के दो-आलम को ज़ेर-ए-दाम करो

'अरीब' देखो न इतराओ चंद शेरों पर

ग़ज़ल वो फ़न है कि 'ग़ालिब' को तुम सलाम करो

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In Hindi By Famous Poet Sulaiman Areeb. is written by Sulaiman Areeb. Complete Poem in Hindi by Sulaiman Areeb. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.