कुछ मारके हमारे भी हम तक ही रह गए
गुमनाम इक सिपाही की ख़िदमात की तरह
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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बोली लगी मता-ए-हुनर की तो अहल-ए-फ़न
इन से आवाज़-ए-कर्ब आती है
राहत के वास्ते न रिफ़ाक़त के वास्ते
क्यूँ मिल रही है उन को सज़ा चीख़ती रही
इस पल दो पल की हस्ती में
जैसे कि इक फ़्रेम हो तस्वीर के बग़ैर
कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई
जो माल उस ने समेटा था वो भी सारा गया
मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है
वो मुझ से पूछने लगा मेरे सवाल अब
तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही
फ़क़ीह-ए-शहर से कुछ ख़ास दुश्मनी तो नहीं