हमें नाबूद मत करना

अगरचे सूत से तकले ने धागे को न खींचा था

मिरे रेशे बुनत के मरहले में थे

रगें माँ की दुरीदों से न बिछड़ी थीं

मैं अपने जिस्म से कुछ फ़ासले पर था

मगर मेरे अक़ीदे का तअय्युन करने वालों ने

मिरे मस्लक के बारे में

जो सोचा था उसे तज्सीम कर डाला

मैं जिस दम अपने होने पर उतर आया

मुझे तक़्सीम कर डाला

किसी ने मेरे माथे पर तिलक दाग़ा

सलीबों को मिरी छाती पे खींचा

और कानों में अज़ाँ भर दी

फिर इस के बा'द

पेशानी पे अँगारे

सलीबें अपने सीने पर

समाअ'त पर नमीदा ज़ंग के ताले सँभाले

मैं ने सारी उम्र

दुनिया के तसर्रुफ़ में गुज़ारी है

मिरी फ़ितरत सिमटना और

क़िस्मत टूट जाना है

मैं पारा हूँ

मुझे दुनिया मसलती है

नफ़ी इसबात की ज़रबें

मुझे तक़्सीम करती हैं

बिखरता हूँ

मिरे ज़र्रे थिरकते हैं

तो कहते हैं

हमें नाबूद मत करना

कि जब तक़्सीम होने का अमल मुमकिन नहीं रहता

तो फिर ज़र्रा

ज़रा भर चोट खाने पर

धमाके को उगलता है

धमाके को समझते हो

धमाका जिस से हर्फ़-ए-कुन टपकता है

हमें नाबूद मत करना

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In Hindi By Famous Poet Syed Mubarak Shah. is written by Syed Mubarak Shah. Complete Poem in Hindi by Syed Mubarak Shah. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.