ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
जब कि दर-ए-मय-कदा वा हो गया
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कहते हैं छुप के रात को पीता है रोज़ मय
बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
पुर्सिश को अगर होंट तुम्हारे नहीं हिलते
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
सँभाल वाइ'ज़ ज़बान अपनी ख़ुदा से डरा इक ज़रा हया कर
है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
क्या बात है कारसाज़ तेरी मैं कौन
साहिल पर आ के लगती है टक्कर सफ़ीने को
जब गुज़रती है शब-ए-हिज्र मैं जी उठता हूँ