ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
ग़म-ए-दीं भी अगर समझो तो इक धंदा है दुनिया का
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हम को हवस-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर नहीं है
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
है रिश्ता एक फिर ये कशाकश न चाहिए
जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स
क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
न बुज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
फूँक दो याँ गर ख़स-ओ-ख़ाशाक हैं
चाहूँ कि हाल-ए-वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
कहते हो सब कि तुझ से ख़फ़ा हो गया है यार
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में
अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ