ये बंदा-ए-ख़ाकसार या'नी 'नाज़िम'
आसी ओ गुनाहगार या'नी 'नाज़िम'
इंसाफ़ नहीं कि यहाँ से जाए नौमीद
बख़्शिश का उमीद-वार या'नी 'नाज़िम'
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वही माबूद है 'नाज़िम' जो है महबूब अपना
ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
क़ाज़ी के मुँह पे मारी है बोतल शराब की
बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
शबिस्ताँ में रहो बाग़ों में खेलो मुझ से क्यूँ पूछो
कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
उस बुत का कूचा मस्जिद-ए-जामे नहीं है शैख़
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
एक है जब मरजा-ए-इस्लाम-ओ-कुफ़्र