शौक़ से लख़्त-ए-जिगर नूर-ए-नज़र पैदा करो
ज़ालिमो थोड़ी सी गंदुम भी मगर पैदा करो
Gulzar
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हज़रत-ए-इक़बाल का शाहीं तो हम से उड़ चुका
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
चीज़ मिलती है ज़र्फ़ की हद तक
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
तन-आसानी नहीं जाती रिया-कारी नहीं जाती
हम ने कितने धोके में सब जीवन की बर्बादी की
तहलील
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
हुस्न को ग़ायत-ए-नज़र जाना
तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे
गडमड