ताबाँ अब्दुल हई कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ताबाँ अब्दुल हई

ताबाँ अब्दुल हई कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ताबाँ अब्दुल हई
नामताबाँ अब्दुल हई
अंग्रेज़ी नामTaban Abdul Hai
जन्म की तारीख1715
मौत की तिथि1749
जन्म स्थानDelhi

ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है

ज़ाहिद हो और तक़्वा आबिद हो और मुसल्ला

ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच

यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'

यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह

यहाँ यार और बरदार कोई नहीं किसी का

वो तो सुनता नहीं किसी की बात

वे शख़्स जिन से फ़ख़्र जहाँ को था अब वे हाए

तुम इस क़दर जो निडर हो के ज़ुल्म करते हो

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

तू कौन है ऐ वाइज़ जो मुझ को डराता है

तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है

तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर

तक रहा है ये कोई सोने की चिड़िया आ फँसे

'ताबाँ' ज़ि-बस हवा-ए-जुनूँ सर में है मिरे

सुने क्यूँ-कर वो लब्बैक-ए-हरम को

सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर

सफ़र दुनिया से करना क्या है 'ताबाँ'

रिंद वाइज़ से क्यूँ कि सरबर हो

क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ

फिर मेहरबाँ हुआ है 'ताबाँ' मिरा सितमगर

नेमत-ए-अल्वान भी ख़्वान-ए-फ़लक की देख ली

न थे आशिक़ किसी बे-दाद पर हम जब तलक 'ताबाँ'

न जा वाइज़ की बातों पर हमेशा मय को पी 'ताबाँ'

मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम

मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ 'ताबाँ'

मोहब्बत तू मत कर दिल उस बेवफ़ा से

मलूँ हों ख़ाक जूँ आईना मुँह पर

मैं तो तालिब दिल से हूँगा दीन का

मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया

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