आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही
भीगती जाए तो कुछ और निखरती जाए
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जुनूँ में और ख़िरद में दर-हक़ीक़त फ़र्क़ इतना है
सर-ता-ब-क़दम एक हसीं राज़ का आलम
क़ुसूर इश्क़ में ज़ाहिर है सब हमारा था
ये मय-कदा है कलीसा ओ ख़ानक़ाह नहीं
मिलेगा दर्द तो दरमाँ की आरज़ू होगी
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे
निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़
तबाहियों का तो दिल की गिला नहीं लेकिन
वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त