किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
कि माहताब तह-ए-आफ़्ताब आया है
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मंज़िलों से बेगाना आज भी सफ़र मेरा
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं
निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
तबाहियों का तो दिल की गिला नहीं लेकिन
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
ज़िंदगी दिल पे अजब सेहर सा करती जाए
रह-ए-तलब में किसे आरज़ू-ए-मंज़िल है