मेरे अफ़्कार की रानाइयाँ तेरे दम से
मेरी आवाज़ में शामिल तिरी आवाज़ भी है
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निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
लाई तिरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद
शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है
लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता
बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं
कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
ये चार दिन की रिफ़ाक़त भी कम नहीं ऐ दोस्त
आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही