तबाहियों का तो दिल की गिला नहीं लेकिन
किसी ग़रीब का ये आख़िरी सहारा था
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जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं
ज़िंदगी दिल पे अजब सेहर सा करती जाए
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
बहार आई गुल-अफ़्शानियों के दिन आए
बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं
ये हुजुम-ए-रस्म-ओ-रह दुनिया की पाबंदी भी है
हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब