उधर चमन में ज़र-ए-गुल लुटा इधर 'ताबाँ'
हमारी बे-सर-ओ-सामानियों के दिन आए
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दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़
सर-ता-ब-क़दम एक हसीं राज़ का आलम
जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं
निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़
कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं
एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही
रहगुज़र हो या मुसाफ़िर नींद जिस को आए है
ये हुजुम-ए-रस्म-ओ-रह दुनिया की पाबंदी भी है