यादों के साए हैं न उमीदों के हैं चराग़
हर शय ने साथ छोड़ दिया है तिरी तरह
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Wasi Shah
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लाई तिरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद
कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं
मिरी सहबा-परस्ती मोरीद-ए-इल्ज़ाम है साक़ी
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
बहार आई गुल-अफ़्शानियों के दिन आए
भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था
ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़
मंज़िलों से बेगाना आज भी सफ़र मेरा
हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं