फ़ुरात-ए-चश्म पे है कर्बला की तुग़्यानी
दरून-ए-कूफ़ा-ए-दिल ईद करने आया हूँ
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(637) Peoples Rate This
घने अरमान गाढ़ी आरज़ू करने से मिलता है
मिला किसी से न अच्छा लगा सुख़न इस बार
क्या शय है खींच लेती है शब को सर-ए-फ़लक
पहाड़ों को बिछा देते कहीं खाई नहीं मिलती
वही बे-लिबास क्यारियाँ कहीं बेल बूटों के बल नहीं
तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया
अव्वल वही सैराब था सानी भी वही था
इक परेशानी अलग थी और पशेमानी अलग
लब-ए-मंतिक़ रहे कोई न चश्म-लन-तरानी हो
ख़ामोश भी रह जाए और इज़हार भी कर दे
सितम-ज़रीफ़ी की सूरत निकल ही आती है