मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
मैं भी किरदार हूँ कहानी का
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(501) Peoples Rate This
इक वहशत सी दर आई है आँखों में
हर दर्द की दवा भी ज़रूरी नहीं कि हो
ख़्वाहिशों की बादशाही कुछ नहीं
मौसम-ए-गुल बहार के दिन थे
मैं तिरे हिज्र की गिरफ़्त में हूँ
हर्फ़
तुम हमारे ख़ून की क़ीमत न पूछो
ये जो शीशा है दिल-नुमा मुझ में
इक अनोखी रस्म को ज़िंदा रखा है
बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूँ
तीरगी की क्या अजब तरकीब है ये