मैं चाँद भेज रहा हूँ कि तुम को देख आए
तुम्हारे शहर में अब शाम हो गई होगी
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देख कर तुम को हैरती हूँ मैं
फिर मिरा ध्यान ज्ञान टूट गया
ख़िश्त-ए-जाँ दरमियान लाने में
ग़म-ए-जहाँ में ग़म-ए-यार ज़म न कर पाया
माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या? ख़ून-ए-जिगर के सामने
आज फिर चाँद देर से निकला
भेज कर शहर हारती है मुझे
शराब शहर में नीलाम हो गई होगी
माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या ख़ून-ए-जिगर के सामने
किसी का मिलना, बिछड़ना और एक दो बातें