जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज
वो शख़्स ख़ुद बहुत बड़ा ज़ेहनी मरीज़ है
Allama Iqbal
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अब तक मिरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
तेरी तो आन बढ़ गई मुझ को नवाज़ कर
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
हम हिज़्ब-ए-इख़्तिलाफ़ में भी मोहतरम हुए
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है
शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें