घर में बैठूँ तो शनासाई बुरा मानती है

घर में बैठूँ तो शनासाई बुरा मानती है

बाहर आ जाऊँ तो तन्हाई बुरा मानती है

मेरी नादानी दिखाती है करिश्मे जब भी

साहब-ए-वक़्त की दानाई बुरा मानती है

माह-ओ-अंजुम की सवारी पे निकलता हूँ जब

दश्त-ए-अफ़्लाक की पहनाई बुरा मानती है

बहर की तह में उतरता हूँ ख़ज़ानों के लिए

ये अलग बात कि गहराई बुरा मानती है

जब मिरे ज़ख़्म महकते हैं तो 'तारिक़'-साहब

इब्न-ए-दौराँ की मसीहाई बुरा मानती है

(599) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Tariq Matin. is written by Tariq Matin. Complete Poem in Hindi by Tariq Matin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.