रात रो रो के गुज़ारी है चराग़ों की तरह
तब कहीं हर्फ़ में तासीर नज़र आई है
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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अभी तो मंसब-ए-हस्ती से मैं हटा ही नहीं
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने
वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
बे-वज्ह न बदले थे मुसव्विर ने इरादे
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है
अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता