ये वीरानी सी यूँही तो नहीं रहती है आँखों में
मिरे दिल ही से कोई जादा-ए-वहशत निकलता है
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सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है
वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने
अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है
इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था
तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें
तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई