तारिक़ क़मर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का तारिक़ क़मर

तारिक़ क़मर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का तारिक़ क़मर
नामतारिक़ क़मर
अंग्रेज़ी नामTariq Qamar
जन्म स्थानUttar Pradesh

ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ

ये किस की प्यास के छींटे पड़े हैं पानी पर

वो लोग भी तो किनारों पे आ के डूब गए

वो भी रस्मन यही पूछेगा कि कैसे हो तुम

साथ होने के यक़ीं में भी मिरे साथ हो तुम

फिर आज भूक हमारा शिकार कर लेगी

मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से

मेरे ज़ख़्मों का सबब पूछेगी दुनिया तुम से

मैं चाहता हूँ कभी यूँ भी हो कि मेरी तरह

क्या अजब लोग थे गुज़रे हैं बड़ी शान के साथ

कोई शिकवा न शिकायत न वज़ाहत कोई

किसी जवाज़ का होना ही क्या ज़रूरी है

कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग

जैसे मुमकिन हो इन अश्कों को बचाओ 'तारिक़'

इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उस ने

इस लहजे से बात नहीं बन पाएगी

हर आदमी वहाँ मसरूफ़ क़हक़हों में था

एक मुद्दत से ये मंज़र नहीं बदला 'तारिक़'

अजब ग़रीबी के आलम में मर गया इक शख़्स

अभी बाक़ी है बिछड़ना उस से

सुकूत-ए-शब में

सिसकती मज़लूमियत के नाम

लहु लहु आँखें

ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ

कभी न आएँगे जाने वाले

जितने अल्फ़ाज़ हैं सब कहे जा चुके

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

फ़ुरात-ए-इस्मत के साहिलों पर

ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ

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