फिर आज भूक हमारा शिकार कर लेगी
कि रात हो गई दरिया में जाल डाले हुए
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(623) Peoples Rate This
सिसकती मज़लूमियत के नाम
फ़ुरात-ए-इस्मत के साहिलों पर
कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग
मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से
रेआया ज़ुल्म पे जब सर उठाने लगती है
हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ
एक तस्वीर जलानी है अभी
लहु लहु आँखें
वो भी रस्मन यही पूछेगा कि कैसे हो तुम
ये आरज़ू थी उसे आइना बनाते हम
अभी बाक़ी है बिछड़ना उस से
मेरे ज़ख़्मों का सबब पूछेगी दुनिया तुम से