फ़क़ीरों का चलन यूँ जिस्म के अंदर महकता है

फ़क़ीरों का चलन यूँ जिस्म के अंदर महकता है

मिरी पगड़ी भी गिर जाए तो मेरा सर महकता है

वो अपने हाथ में इक फूल भी ले कर नहीं आया

मगर जैसे कोई गुलशन मिरे अंदर महकता है

मुझे देखे बिना उस का कभी चेहरा नहीं खिलता

अजब ख़ुशबू का झोंका है मुझे छू कर महकता है

परी की दास्तानों से मोअत्तर है उधर आँगन

इधर सालन की ख़ुशबू में रसोई घर महकता है

ये माना सब के हाथों में यहाँ कश्कोल है लेकिन

यही वो गाँव है हर दिन जहाँ लंगर महकता है

न जाने ख़्वाब के टूटे खंडर में कौन आया था

कभी कमरा महकता है कभी बिस्तर महकता है

मिरे लहजे में घुलती जा रही है यूँ तिरी ख़ुशबू

कोई भी आइना देखूँ तिरा पैकर महकता है

सलीक़ा यूँ भटकने का सिखाया है फ़क़ीरों ने

जिधर से हम गुज़र जाएँ वहाँ घर घर महकता है

न जाने गाँव के पनघट में 'सागर' कौन आया था

अभी तक देखिए तालाब का पत्थर महकता है

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In Hindi By Famous Poet Taufeeq Sagar. is written by Taufeeq Sagar. Complete Poem in Hindi by Taufeeq Sagar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.