तौक़ीर तक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का तौक़ीर तक़ी

तौक़ीर तक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का तौक़ीर तक़ी
नामतौक़ीर तक़ी
अंग्रेज़ी नामTauqeer Taqi

ज़र का बंदा हो कि महरूमी का मारा हुआ शख़्स

यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को

सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के

मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

कल जहाँ दीवार ही दीवार थी

जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़

इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग

हिज्र था बार-ए-अमानत की तरह

हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया

दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया

बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग

बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं

अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह

याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है

सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी

मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

कोई तासीर तो है इस की नवा में ऐसी

ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा

कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग

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