अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
ग़ैर को राज़-दाँ नहीं करते
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यूँ तो बरसों न पिलाऊँ न पियूँ ऐ ज़ाहिद
दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
छब्बीस जनवरी
फ़रियाद है किस लिए दर-ए-यज़्दाँ पर
जब काली घटाएँ झूम कर आती हैं
वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना