दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब
उस के लाखों हैं ख़रीदार कि माल अच्छा है
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ये किस से आज बरहम हो गई है
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
उड़ते देखा जो ताइर-ए-पर्रां को
तस्वीर-ए-रहमत
जब काली घटाएँ झूम कर आती हैं
हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया
ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया
होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम
है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते