फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इन मुश्किलों से अहद-बरआई न हो सकी
Mir Taqi Mir
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हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना
ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया
क़तरा समझे हक़ीक़त-ए-दरिया क्या
दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी
ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को
काला इंसान हो या कोई ज़र्द इंसान
तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
हंगामा तिरा ही गर्म हर इक सू है
बुरा हो उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ का हम-नशीं हम तो
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम