फ़रियाद है किस लिए दर-ए-यज़्दाँ पर
इल्ज़ाम तराशते हो क्यूँ शैताँ पर
यज़्दाँ ने किए कभी न शैताँ ने किए
इंसाँ ने किए हैं जो सितम इंसाँ पर
Rahat Indori
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वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को
बुरा हो उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ का हम-नशीं हम तो
उड़ते देखा जो ताइर-ए-पर्रां को
हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं
ये किस से आज बरहम हो गई है
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
मंदिर भी साफ़ हम ने किए मस्जिदें भी पाक
होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई