है नाज़िश-ए-काएनात ये पैकर-ए-ख़ाक
धूम इस ने मचा रक्खी है ज़ेर-ए-अफ़्लाक
ये दार-ए-फ़ना ये इस की बज़्म-आराई
ग़ाफ़िल अंजाम से है या है बेबाक
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हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं
कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी
बुरा हो उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ का हम-नशीं हम तो
ये किस से आज बरहम हो गई है
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा
होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम
साफ़ आता है नज़र अंजाम हर आग़ाज़ का
ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
राज़-ए-हस्ती बशर को हो क्या मा'लूम
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
उड़ते देखा जो ताइर-ए-पर्रां को