हंगामा तिरा ही गर्म हर इक सू है
तेरे दम से है जितनी हा-ओ-हू है
दिल से पैहम यही सदा उठती है
तू ही तू है जहाँ में तू ही तू है
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फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
न इल्म है न ज़बाँ है तो किस लिए 'महरूम'
ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
काला इंसान हो या कोई ज़र्द इंसान
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना
ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा
काविशों से अमाँ मिले न मिले
दाम-ए-ग़म-ए-हयात में उलझा गई उमीद
उठाने के क़ाबिल हैं सब नाज़ तेरे
फ़रियाद है किस लिए दर-ए-यज़्दाँ पर
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या