हर राह में है राह-नुमा नाम तिरा
हर आह में है अक़्द-कुशा नाम तिरा
तस्कीं में तिरा ख़याल तस्कीन-अफ़रोज़
अंदोह में अंदोह-रुबा नाम तिरा
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कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना
ग़लत की हिज्र में हासिल मुझे क़रार नहीं
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
दरवाज़े पे तेरे इक जहाँ झुकता है
हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया
ख़ाक-ए-हिंद