हम भूल को अपनी इल्म-ओ-फ़न समझे हैं
ग़ुर्बत के मक़ाम को वतन समझे हैं
मंज़िल पे पहुँच के झाड़ देंगे इस को
ये गर्द-ए-सफ़र है जिस को तन समझे हैं
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1023) Peoples Rate This
जब काली घटाएँ झूम कर आती हैं
ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा
हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना
बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा
जंगल की ये दिल-नशीं फ़ज़ा ये बरसात
हंगामा तिरा ही गर्म हर इक सू है
नूर-जहाँ का मज़ार
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
साफ़ आता है नज़र अंजाम हर आग़ाज़ का
इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है