जंगल की ये दिल-नशीं फ़ज़ा ये बरसात
ये नग़्मा-ए-बाराँ ये हवा ये बरसात
सामान वारफ़्तगी-ए-शाइ'र के हैं
कोयल की ये कूक ये घटा ये बरसात
Ahmad Faraz
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फ़रियाद है किस लिए दर-ए-यज़्दाँ पर
हंगामा तिरा ही गर्म हर इक सू है
छब्बीस जनवरी
इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई
ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया
न इल्म है न ज़बाँ है तो किस लिए 'महरूम'
बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा
हूँ वो बर्बाद कि क़िस्मत में नशेमन न क़फ़स
ये किस से आज बरहम हो गई है
राज़-ए-हस्ती बशर को हो क्या मा'लूम
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
उड़ते देखा जो ताइर-ए-पर्रां को