काला इंसान हो या कोई ज़र्द इंसान
रंगत में हो या चाँद की गर्द इंसान
ख़ारिज इंसानियत से उस को समझो
इंसाँ का अगर नहीं है हमदर्द इंसान
Gulzar
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Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
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अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
शहर से एक तरफ़ दूर बहुत
ज़ाहिर में क़ज़ा बहुत सितम ढाती है
उठाने के क़ाबिल हैं सब नाज़ तेरे
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
है नाज़िश-ए-काएनात ये पैकर-ए-ख़ाक
दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी
वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं
कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी
बादल और तारे
ख़ाक-ए-हिंद