क़तरा समझे हक़ीक़त-ए-दरिया क्या
ज़र्रे को इल्म-ए-वुसअत-ए-सहरा क्या
पाया न सुराग़ ज़ात-ए-बे-पायाँ का
अक़्ल-ए-इंसान भटक रही है क्या क्या
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(849) Peoples Rate This
जंगल की ये दिल-नशीं फ़ज़ा ये बरसात
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
है नाज़िश-ए-काएनात ये पैकर-ए-ख़ाक
काला इंसान हो या कोई ज़र्द इंसान
तस्वीर-ए-रहमत
साफ़ आता है नज़र अंजाम हर आग़ाज़ का
सितम कोई नया ईजाद करना
बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा
हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया
दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी
शहीद भगत-सिंह