आबरू Poetry

तिरी शबीह को लिक्खा है रंग-ओ-बू मैं ने

एहतिमाम सादिक़

तिरी तलाश तिरी जुस्तुजू उतरती है

हनीफ़ राही

मैं ज़ेर-ए-लब अपना शजरा-ए-नसब दोहरा रहा था

जवाज़ जाफ़री

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

क्यूँ वो महबूब रू-ब-रू न रहे

ज़हीर अहमद ताज

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के

ज़हीर रहमती

बात मेहंदी से लहू तक आ गई

ज़फ़र कलीम

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

ज़फ़र इक़बाल

बताऊँ मैं तुम्हें आँखों में आँसू या लहू क्या है

यूनुस ग़ाज़ी

ये हम ने माना कि होगा विसाल-ए-यार नसीब

याक़ूब अली आसी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी

वसीम बरेलवी

देहली

वामिक़ जौनपुरी

हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें

वामिक़ जौनपुरी

ख़त ने आ कर की है शायद रहम फ़रमाने की अर्ज़

वली उज़लत

कुछ दिन तिरा ख़याल तिरी आरज़ू रही

वाली आसी

मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ

वाजिद अमीर

हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने

वाहिद प्रेमी

तुझ में तो एक ख़ू-ए-जफ़ा और हो गई

वहीद इलाहाबादी

चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्त

उम्मीद फ़ाज़ली

हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

रहगुज़र हो या मुसाफ़िर नींद जिस को आए है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

सू-ए-दयार ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया

तअशशुक़ लखनवी

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

लिखा है गो तेरी क़िस्मत में 'शौकत' चश्म-ए-तर रखना

सय्यद काज़िम अली शौकत बिलगिरामी

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