आदत Poetry

तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ

ज़ुबैर शिफ़ाई

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया

ज़ुबैर फ़ारूक़

बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है

ज़ुबैर अली ताबिश

कुछ ज़ुल्म ओ सितम सहने की आदत भी है हम को

ज़िया ज़मीर

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

ज़िया ज़मीर

हमें तो आदत-ए-ज़ख़्म-ए-सफ़र है क्या कहिए

ज़ेहरा निगाह

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

किसी की देन है लेकिन मिरी ज़रूरत है

ज़ीशान साहिल

राहतों के धोके में इज़्तिराब ढूँडे हैं

ज़मीर अतरौलवी

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

हरे पत्तो सुनहरी धूप की क़ुर्बत में ख़ुश रहना

ज़फ़र सहबाई

इश्क़ उदासी के पैग़ाम तो लाता रहता है दिन रात

ज़फ़र इक़बाल

हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता

ज़फ़र इक़बाल

बात ऐसी भी कोई नहीं कि मोहब्बत बहुत ज़ियादा है

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुद अपना साथ भी चुभने लगा था

यासमीन हबीब

किसी के साथ किया निस्बत हुई थी

यासमीन हबीब

तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी

यशब तमन्ना

चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी

यशब तमन्ना

मुशाहिदा न कोई तजरबा न ख़्वाब कोई

याक़ूब राही

फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी

वज़ीर अली सबा लखनवी

सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है

वज़ीर आग़ा

तिरी उल्फ़त में जितनी मेरी ज़िल्लत बढ़ती जाती है

वासिफ़ देहलवी

कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से

वसी शाह

अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे

वसीम बरेलवी

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

वसीम बरेलवी

रात भर तुम न जागते रहियो

वक़ास बलूच

होंट मसरूफ़-ए-दुआ आँख सवाली क्यूँ है

वजीह सानी

चाहतों की जो दिल को आदत है

वजद चुगताई

ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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