शब्द Poetry

कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

बशारत के कासों में

हामिद जीलानी

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

मैं रस्ते में जहाँ ठहरा हुआ था

वफ़ा नक़वी

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

सफ़र मुझ पर अजब बरपा रही है

ज़िया ज़मीर

वक़्त कातिब है

ज़िया जालंधरी

कही अन-कही

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

जगह

ज़ीशान साहिल

ऐसा लगता है जैसे पूरी है

ज़ीशान साहिल

मनफ़ी शुऊर का इक वरक़

ज़ाहिद मसूद

उस के अल्फ़ाज़-ए-तसल्ली ने रुलाया मुझ को

ज़हीर सिद्दीक़ी

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है

ज़फ़र इक़बाल

बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए

ज़फ़र इक़बाल

तू ख़ुद भी नहीं और तिरा सानी नहीं मिलता

ज़फ़र हमीदी

अयाँ हो आप बेगाना बनाया

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

आवेज़िश

वज़ीर आग़ा

दीमक

वहीद अख़्तर

इक-दूजे में भी तो रहा जा सकता है

विनीत आश्ना

किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ

उर्मिलामाधव

जितने अल्फ़ाज़ हैं सब कहे जा चुके

तारिक़ क़मर

सोच का ज़हर न अब शाम-ओ-सहर दे कोई

तनवीर सामानी

जान के एवज़

तनवीर अंजुम

तासीर नहीं रहती अल्फ़ाज़ की बंदिश में

ताहिर अज़ीम

मैं उस की मोहब्बत से इक दिन भी मुकर जाता

ताहिर अज़ीम

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