साधन Poetry (page 3)

तेरे मेरे ख़्वाब जुदा

गिरिजा व्यास

वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा

ग़ालिब

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

ग़ालिब

ज़ौक़-ए-नज़र को जल्वा-ए-बेताब ले गया

फ़ितरत अंसारी

ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा

फ़ाज़िल जमीली

अब देखता हूँ मैं तो वो अस्बाब ही नहीं

फ़रहत एहसास

हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की

फ़रहत एहसास

है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है

फ़रहत एहसास

आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन

फ़रहत एहसास

ऐ दिल-ए-बेताब ठहर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

निशान-ए-ज़िंदगी

एजाज़ गुल

अपनी रुस्वाई का एहसास तो अब कुछ भी नहीं

एहसान दानिश

मंज़र है अभी दूर ज़रा हद्द-ए-नज़र से

डॉ. पिन्हाँ

पुर-लुत्फ़ सुकूँ-बख़्श हवाएँ भी बहुत थीं

डॉक्टर आज़म

फिर मरहला-ए-ख़्वाब-ए-बहाराँ से गुज़र जा

दिल अय्यूबी

चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

एक ज़िंदगी और मिल जाए

अज़रा अब्बास

शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने

अज़्म शाकरी

बातों में बहुत गहराई है, लहजे में बड़ी सच्चाई है

अज़ीज़ नबील

ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है

अज़ीम हैदर सय्यद

यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं

अतहर नासिक

अक्स जल जाएँगे आईने बिखर जाएँगे

असलम महमूद

शम्-ए-इख़्लास-ओ-यक़ीं दिल में जला कर चलिए

अशोक साहनी

कश्मकश में हैं तिरी ज़ुल्फ़ों के ज़िंदानी हनूज़

अश्क अमृतसरी

मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर

असअ'द बदायुनी

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

अरशद अली ख़ान क़लक़

मैं उसे देख रही हूँ बड़ी हैरानी से

अंबरीन हसीब अंबर

ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी

अल्लामा इक़बाल

जाना तो बहुत दूर है महताब से आगे

आलम ख़ुर्शीद

फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए

अख़लाक़ बन्दवी

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