बाज़ार Poetry

तेज़ है मेरा क़लम तलवार से

एज़ाज़ काज़मी

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

लापता

मुबश्शिर अली ज़ैदी

रौशनी के सिलसिले ख़्वाबों में ढल कर रह गए

असरार ज़ैदी

इमारत हो कि ग़ुर्बत बोलती है

वलीउल्लाह वली

दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर

बिमल कृष्ण अश्क

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

बातें करो

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

आईने के आख़िरी इज़हार में

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

ये सच है यहाँ शोर ज़ियादा नहीं होता

ज़ेहरा निगाह

कश्ती

ज़ीशान साहिल

इसी दर से इसी दीवार से आगे नहीं बढ़ता

ज़िशान मेहदी

दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए

ज़ीशान अतहर

उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे

ज़ेब ग़ौरी

फ़िल्मी इश्क़

ज़रीफ़ जबलपूरी

इश्क़ में तेरे जंगल भी घर लगते हैं

ज़किया ग़ज़ल

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

ख़ुश्क लम्हात के दरिया में बहा दे मुझ को

ज़ाहिद फ़ारानी

वो महफ़िलें वो मिस्र के बाज़ार क्या हुए

ज़हीर काश्मीरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

हुस्न की गर्मी-ए-बाज़ार इलाही तौबा

ज़हीर देहलवी

वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो

ज़हीर देहलवी

ज़र्द पत्तों को हवा साथ लिए फिरती है

ज़फ़र रबाब

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

रौ में आए तो वो ख़ुद गर्मी-ए-बाज़ार हुए

ज़फ़र इक़बाल

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