बिसात Poetry

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

प्यादे

मुबश्शिर अली ज़ैदी

क़र्या-ए-वीराँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

हम

ज़िया जालंधरी

आइने में ख़ुद अपना चेहरा है

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

लगी थी जान की बाज़ी बिसात उलट डाली

ज़फ़र इक़बाल

मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया

ज़फ़र इक़बाल

जो तू नहीं तो मौसम-ए-मलाल भी न आएगा

याक़ूब यावर

अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता

यगाना चंगेज़ी

बेबसी

वसीम बरेलवी

मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़रती है गुज़र जाने दो

तबस्सुम रिज़वी

तेरा ये हुस्न-ए-बे-कराँ मुक़य्यद ज़मान है

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

दस्त-बरदार हुआ मैं भी तलबगारी से

सुहैल अख़्तर

क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी

सिराज लखनवी

सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए

सिराज औरंगाबादी

दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा

शोला अलीगढ़ी

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न

शमीम करहानी

तिलिस्म है कि तमाशा है काएनात उस की

शमीम हनफ़ी

निगाह ओ दिल के तमाम रिश्ते फ़ज़ा-ए-आलम से कट गए हैं

शकील जाज़िब

वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ

शकेब जलाली

लबों पे आ के रह गईं शिकायतें कभी कभी

शहज़ाद अहमद

जब अपना मुक़द्दर ठहरे हैं ज़ख़्मों के गुलिस्ताँ और सही

शाहिद अख़्तर

कैसा कैसा दर पस-ए-दीवार करना पड़ गया

शाहीन अब्बास

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में

सीमाब अकबराबादी

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में

सीमाब अकबराबादी

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