मूर्ति कदह Poetry

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

जब भी वो मुझ से मिला रोने लगा

ज़फ़र हमीदी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

चराग़ सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा

सिराज लखनवी

क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी

सिराज लखनवी

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

हो राहज़न की हिदायत कि राहबर के फ़रेब

शौकत थानवी

ज़मीं पे रह के दिमाग़ आसमाँ से मिलता है

शमीम जयपुरी

कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह

शमीम अब्बास

बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था

शमीम अब्बास

मर कर अरे वाइज़ कोई ज़िंदा नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए

रज़ा हमदानी

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

वो दिल में और क़रीब-ए-रग-ए-गुलू भी मिले

हनीफ़ अख़गर

बरहमन खोले हीगा बुत-कदा का दरवाज़ा

हैदर अली आतिश

दिल से तिरा ख़याल न जाए तो क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

उस शो'ला-रू से जब से मिरी आँख जा लगी

ग़मगीन देहलवी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

फ़ना बुलंदशहरी

हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है

फ़ना बुलंदशहरी

किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई

दर्शन सिंह

ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ

अज़ीज़ वारसी

हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब

अरशद अली ख़ान क़लक़

हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो

अरशद अली ख़ान क़लक़

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