चाक Poetry

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

एज़रा-पउंड की मौत पर

अख़्तर हुसैन जाफ़री

लोग सब क़ीमती पोशाक पहन कर पहुँचे

दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

मुसालहत

ज़ुबैर रिज़वी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

ज़िया जालंधरी

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

अब तक शरीक-ए-महफ़िल-ए-अग़्यार कौन है

ज़ेहरा निगाह

ग़ुबार-ए-इश्क़ से हस्ती को भरने वाला हूँ मैं

ज़ीशान साजिद

मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूँ

ज़ेब ग़ौरी

मौज-ए-रेग सराब-सहरा कैसे बनती है

ज़ेब ग़ौरी

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ

ज़ेब ग़ौरी

ख़ाक-ज़ादे ख़ाक में या ख़ाक पर हैं आज भी

ज़मीर अतरौलवी

दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है

ज़की तारिक़

दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है

ज़की तारिक़

हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी

ज़काउद्दीन शायाँ

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

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